ज्ञातव्य हो कि विगत वर्षों की भांति रामकृष्ण मिशन आश्रम, मोराबादी राँची में त्रिदिवसीय वार्षिकोत्सव का प्रथम दिन श्री रामकृष्ण दिवस के रूप में आज दिनांक 31मई को सोल्लास संपन्न हुआ।
कार्यक्रम का शुभारंभ आश्रम के संन्यासियों एवं ब्रह्मचारियों के स्वस्ति वाचन और दीप प्रज्ज्वलन से हुआ।
उद्घाटन संगीत श्री मत् स्वामी स्वामी ईश्वरानंद जी ने अपने सुकंठ गायन प्रेम भरो मन रे ग़ाहो रामकृष्ण नाम से प्रारंभ किया। तबले पर संगत कर रहे थे श्री रेणुशंकर मिश्र जी । कार्यक्रम अपराह्न 4:30 से एक धर्मसभा से प्रारंभ हुआ। विषय था : भारत में आध्यात्मिक पुनर्जागरण एवम् श्री रामकृष्ण।
स्वामी भवेशानन्द जी, सचिव, रामकृष्ण मिशन आश्रम, मोराबादी, राँची ने स्वागत भाषण में सभी आगत – अतिथियों को शुभकामना देते हुए श्रीरामकृष्णदेव से सबों के कल्याण की प्रार्थना की । तदन्तर उन्होंने ‘भारत में आध्यात्मिक पुनर्जागरण एवम् श्री रामकृष्ण देव’ पर अपनी मधुर वाणी में कहा तदंतरउन्होंने भारत में आध्यात्मिक पुनर्जागरण एवम् श्री रामकृष्ण देव पर अपनी मधुर वाणी में कहा जब जब धर्म की हानि होती है तब तब प्रभु अवतार लेते हैं।मैकाले ने जो हमारी संस्कृति को नुकसान पहुंचाने का कार्य किया उसका प्रत्युत्तर था रामकृष्ण देव और रामकृष्ण मिशन श्री रामकृष्ण अग्यानी को ज्ञानी अशिक्षित शिक्षित विभिन्न संप्रदायों के बीच समन्वय स्थापित करने आए थे।
इस पुनीत अवसर पर स्वामी सत्संगानंद जी , सचिव रामकृष्ण मिशन टी बी सेनेटोरियम, तुपुदाना, राँची ने विषय – वस्तु को बड़े ही आकर्षक ढंग से श्रोताओं के सम्मुख रखा।
श्री सुरेश नारायण झा, सदस्य कार्यकारिणी समिति, रामकृष्ण मिशन, आश्रम, मोराबादी, राँची ने पौराणिक, प्राचीन काल से अर्वाचीन तक अनवरत चले आ रहे मत मतांतर, पंथ, संप्रदाय में व्याप्त विवादों को श्रोताओं के सम्मुख रखा और उनका हल निकालने वाले सबसे बड़े समन्वयचार्य श्रीरामकृष्ण देव के अवदान की संक्षिप्त में जानकारी दी।
उद्घाटन सत्र के अध्यक्ष थे, श्रीमत् स्वामी सत्यदेवानंद जी महाराज सचिव, रामकृष्ण मठ एवम् रामकृष्ण मिशन, मुम्बई, महाराष्ट्र
उन्होंने अपने अध्यक्षीय प्रवचन में श्री रामकृष्ण देव पर बड़े ही भावपूर्ण रोचक तथ्यों को रखा। उन्होंने अपने सम्बोधन में कहा कि त्याग सिखाने के लिए आए थे। स्वामी विवेकानंद के अनुसार श्री रामकृष्णदेव प्रेम की प्रतिमूर्ति थे। उनकी गाथा अवर्णनीय है। उनका समीचीन वर्णन कोई नहीं कर सकता है।
सभी को धन्यवाद ज्ञापन करते हुए आश्रम के सह सचिव स्वामी अंतरानंद जी ने स्वामी विवेकानंद जी को उद्धृत करते हुए कहा कि आने वाला समय भारत का होगा। भारत विश्व को मार्ग दिखलाएगा। अध्यात्म और विज्ञान की शक्ति से भारत जगत का नेतृत्व करेगा। श्री रामकृष्ण देव कहा करते थे स्वयं को जानो। स्वामी विवेकानंद कहते थे स्वयं को जानो।
समापन संगीत की प्रस्तुति स्वामी प्रभुनामानंद जी महाराज ने ‘ अपनी करि अपनार पूजा ‘भजन गाकर की।
सांस्कृतिक कार्यक्रम शाम 7:00 बजे से कर्मचारी, छात्र प्रशिक्षु और भक्तगण द्वारा की गई, जो अत्यंत ही मनोहारी, हृदयस्पर्शी एवं आकर्षक था।






