रामकृष्ण मिशन आश्रम, मोराबादी सभागार में भक्त सम्मलेन का आयोजन हुआ। कार्यक्रम का मुख्य विषय- शरणागति एवं पुरुषार्थ रहा।
कार्यक्रम का आरम्भ, आश्रम के सन्यासीवृन्दों के द्वारा,पूजा-आरती , वैदिक मंत्रोचार एवं ध्यान अभ्यास के साथ हुआ।
सम्मेलन में मुख्य वक्ता स्वामी शांतात्मानंद जी महाराज रहे। वह रामकृष्ण मिशन विवेकानंद इंस्टिट्यूट ऑफ़ वैल्यूज, गुरुग्राम के संस्थापक और सचिव हैं और उन्होंने माध्यमिक स्तर के 6000 से अधिक CBSE संबद्ध विद्यालयों के 10 लाख से अधिक विद्यार्थियों तक Awakened Citizen Programme के माध्यम से चरित्र निर्माण एवं बच्चों की क्षमताओं को अभिव्यक्त करने में सहायता की है।
उन्होंने बताया कि
पुरुषार्थ -जीवन के चार उद्देश्य ( Objectives) हैं धर्म – अर्थ – काम – मोक्ष।
पुरुषार्थ के लिए प्रयास अर्थात ‘पुरुषकार’ की आवश्यकता है। हर हिन्दू का अंतिम चरम लक्ष्य मोक्ष ही है। जो धीमी गति से जाना चाहते हैं
उनके लिए अर्थ उपार्जन संचय और काम भोग का मार्ग है।इस मार्ग को प्रवृत्ति मार्ग कहते हैं।गृहस्थ को कामना पूर्ति और भोग लाभ पर भी अधिकार है।
पर धर्म का अंकुश रखते हुए उन्हें अर्थ उपार्जन की भरपूर चेष्टा करनी चाहिए। तभी यह उपलब्धि टिकाऊ होगा। हिन्दू धर्म , निर्धन – गरीब रहने का प्रचार नहीं करता , जैसा की आम धारणा है।
वह तो गृहस्थों को धन उपार्जन के लिए भरपूर प्रयास के लिए प्रेरित करता है। कुछ भी प्राप्त करने के प्रयास को पुरुषकार कहते हैं।
पर स्मरण रहे कि सभी प्रयास के अंत में परिणाम पूरी तरह “पंचम” कारक यानि, “दैव” पर निर्भर है । अतः शरणागति की भी आवश्यकता है।
श्री रामकृष्ण परमहंस के पास लाटू और नरेंद्र दोनों ही आए। पर लाटू शरणागति ले कर आए , नरेंद्र पुरुषकार का भाव ले कर आए। परन्तु बाद में , लाटू महाराज( स्वामी अद्भुतानंद) , पुरषकार का अभ्यास भी किया और नरेंद्र ( स्वामी विवेकानंद ) ने शरणागति अवस्था को प्राप्त किया। अतः दोनों ही आवश्यक है – शरणागति एवं पुरुषार्थ।
“शरणागति एवं पुरुषार्थ ” इस विषय पर आश्रम के सचिव स्वामी भवेशानंद जी महाराज ने वेदान्त के दृष्टिकोण से , स्वामी अंतरानंद जी ने श्री रामकृष्ण के प्रसंग में , स्वामी इष्टकामनानन्द जी ने शास्त्र के अलोक में प्रवचन किये ।
आश्रम की भक्त श्रीमती सुस्मिता दत्त ने श्री माँ सारदा देवी के सन्दर्भ में अपना वक्तव्य रखा। स्वामी प्रभुनामानन्द जी, स्वामी ईश्वरानन्द जी एवं श्री श्यामल रॉय जी ने मधुर भजन प्रस्तुत किया । तबले पर संगत दिया – श्री दिलीप बनर्जी एवं श्री रेणुशंकर मिश्र जी ने ।सन् 2027 में आश्रम के शताब्दी समारोह में उद्घाटन होना है। प्रशांत देव जी ने नव मंदिर निर्माण की विषय में बताया ।
इस कार्यक्रम में शहर एवं सुदूर ग्रामों के लगभग तीन सौ भक्त उत्साह और भक्ति से सम्मिलित हुए। कार्यक्रम में मंच संचालन श्री एस एन झा ने किया। कार्यक्रम को सफल बनाने में आश्रम एवं दिव्यायन के सदस्यो का योगदान रहा।


